Last modified on 4 मई 2011, at 10:52

जीवन व्यर्थ गँवाया / महेश चंद्र पुनेठा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:52, 4 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश चंद्र पुनेठा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> भूखे का भो…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भूखे का भोजन
प्यासे का पानी
ठिठुरते की आग
तपते को हवा
बेघर का घर
जरूरतमंद का धन
लुटे-पिटे का ढाढ़स
बिछुड़ते का राग
फगुवे का फाग
गर इतना भी बन न पाया
हाय! जीवन यॅू ही व्यर्थ गँवाया ।