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1.

बाहर और भीतर

जो शून्य है

जगाता रहता है

बार-बार


मेरे अन्दर

कभी

वर्षा की झड़ियाँ

पड़ती हैं लगातार

कभी भावों

और विचारों के

वृक्षों को

झकझोरती

बहती है

तेज़

हवा

और बाहर भी

यही कुछ

होता है--

पर मैं

अपने में डूबा

बाहर के

शून्य में होते

विवरणों को

नहीं पढ़ पाता


और जब कभी भी