पहले तो मेरे दर्द को अपना बनाइए
फिर जो भी सुनाना हो, खुशी से सुनाइए
खुशबू न वह मिटेगी जो दिल में है बस गयी
जाकर कहीं भी प्यार की दुनिया बसाइए
पलकों की ओट में कोई दिल भी है बेक़रार
मुँह पर भले ही बेरुखी हमसे दिखाइए
कुछ मैं भी अपने आप को धीरज सीखा रहा
कुछ आप भी तो खुद को तड़पना सिखाइए
मुस्कान नहीं होठों पर, आँखें भरी-भरी
सौ बार आइये मगर ऐसे न आइए
उड़िए सुगंध बनके हवाओं में अब, गुलाब!
निकले हैं बाग़ से तो ग़ज़ल में समाइए