Last modified on 7 मई 2009, at 22:17

धुन ये है / कृष्ण बिहारी 'नूर'

धुन ये है आम तेरी रहगुज़र होने तक
हम गुज़र जाएँ ज़माने को ख़बर होने तक

मुझको अपना जो बनाया है तो एक और करम
बेख़बर कर दे ज़माने को ख़बर होने तक

अब मोहब्बत की जगह दिल में ग़मे-दौरां है
आइना टूट गया तेरी नज़र होने तक

ज़िन्दगी रात है मैं रात का अफ़साना हूँ
आप से दूर ही रहना है सहर होने तक

ज़िन्दगी के मिले आसार तो कुछ ज़िन्दा में
सर ही टकराईये दीवार में दर होने तक