Last modified on 31 दिसम्बर 2007, at 02:42

दिल पे एक तरफ़ा क़यामत करना / परवीन शाकिर

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:42, 31 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह= }} दिल पे एक तरफ़ा क़यामत करना<br> मु...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दिल पे एक तरफ़ा क़यामत करना
मुस्कुराते हुए रुखसत करना

अच्छी आँखें जो मिली हैं उसको
कुछ तो लाजिम हुआ वहशत करना

जुर्म किसका था, सज़ा किसको मिली
अब किसी से ना मोहब्बत करना

घर का दरवाज़ा खुला रखा है
वक़्त मिल जाये तो ज़ह्मत करना