Last modified on 21 मई 2018, at 23:53

गुरू की बाणी आई, याद सब चेल्या नै / राजेराम भारद्वाज

Sandeeap Sharma (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:53, 21 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेराम भारद्वाज |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

                   (9)

सांग:– गोपीचंद-भरथरी & अनुक्रमांक – 25
 
गुरू की बाणी आई, याद सब चेल्या नै,
मन मैं करया विचार ।। टेक ।।

उस नगरी मैं जाके अलख जगाईयों, जड़ै धन बिन हो दातार,
हलवा पूरी खीर मिठाई, ना चाहिए अन्न आहार।।

कुएं बावडी ताल सरोवर, ना बहती हो कोए धार,
उस तीर्थ का पाणी लाइयों, ना भरती हो पणिहार।।

पांखा बिन पक्षी उड़ते, मर-मर जीवै संसार,
सूर्य बिना रोशनी हो, बिन बादल पड़ै फुंहार।।

राजेराम रटै दुर्गे नै, होज्या बेड़ा पार,
चार यादकर गंधर्फ नीति, फेर बणीये कलाकार।।