भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुरू की बाणी आई, याद सब चेल्या नै / राजेराम भारद्वाज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

                   (9)

सांग:– गोपीचंद-भरथरी (अनुक्रमांक – 25)
 
गुरू की बाणी आई, याद सब चेल्या नै,
मन मैं करया विचार ।। टेक ।।

उस नगरी मैं जाके अलख जगाईयों, जड़ै धन बिन हो दातार,
हलवा पूरी खीर मिठाई, ना चाहिए अन्न-आहार।।

कुएं बावडी ताल सरोवर, ना बहती हो कोए धार,
उस तीर्थ का पाणी लाइयों, ना भरती हो पणिहार।।

पांखा बिन पक्षी उड़ते, मर-मर जीवै संसार,
सूर्य बिना रोशनी हो, बिन बादल पड़ै फुंहार।।

राजेराम रटै दुर्गे नै, होज्या बेड़ा पार,
चार यादकर गंधर्फ नीति, फेर बणीये कलाकार।।