Last modified on 19 जुलाई 2023, at 11:08

अनुगूँज अकेलेपन की / विचिस्लाफ़ कुप्रियानफ़ / दिविक रमेश

हो सकता है प्यार एकतरफ़ा
निराधार भी हो सकता है, ईर्ष्यावश,
वफ़ादारी रह सकती है अनुत्तरित ।

पर विच्छेद
आपसी ही होता है हमेशा,
हमेशा आपसी ही होता है अकेलापन ।

किसी अकेले की
करुणाभरी आह का –
कहाँ हो तुम ?
और तुम ? तुम कहाँ हो ?
जवाब देती है
एक अनुगूँज सौम्य ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : दिविक रमेश