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अनुगूँज अकेलेपन की / विचिस्लाफ़ कुप्रियानफ़ / दिविक रमेश

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हो सकता है प्यार एकतरफ़ा
निराधार भी हो सकता है, ईर्ष्यावश,
वफ़ादारी रह सकती है अनुत्तरित ।

पर विच्छेद
आपसी ही होता है हमेशा,
हमेशा आपसी ही होता है अकेलापन ।

किसी अकेले की
करुणाभरी आह का –
कहाँ हो तुम ?
और तुम ? तुम कहाँ हो ?
जवाब देती है
एक अनुगूँज सौम्य ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : दिविक रमेश

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
           Вячеслав Куприянов
              Эхо одиночества

Любовь может быть неразделенной
Ревность может быть беспричинной
Верность может быть безответной

Но разлука всегда обоюдна
Одиночество всегда взаимно
На лирический вздох одинокого

— Где ты?
— А ты где?
отвечает трезвое эхо