भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुझे शब्द चाहिए/ प्रदीप मिश्र

Kavita Kosh से
Pradeepmishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:39, 13 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>'''मुझे शब्द चाहिए''' हँसना चाहता हूँ इतनी जोर की हँसी चाहिए जिसकी…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे शब्द चाहिए

हँसना चाहता हूँ
इतनी जोर की हँसी चाहिए
जिसकी बाढ़ में बह जाए
मन की सारी कुण्ठाएं

रोना चाहता हूँ
इतनी करुणा चाहिए कि
उसकी नमी से
खेत में बदल जाए सारा मरूस्थल

चिल्लाना चाहता हूँ
इतनी तीव्रता चाहिए जिससे
सामने खड़ी चट्टान में
दरार पड़ जाए

बात करना चाहता हूँ
ऐसे शब्द चाहिए
जो हमारे रगों में बहें

जैसे बहती रहती है नदी
पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे अन्दर निरंतर
जैसे भीनता रहता है वायु
फेफड़ों की सतह पर



बात करना चाहता हूँ
मुझे वायु जैसे शब्द चाहिए
और नदी जैसी भाषा*