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मुझे शब्द चाहिए/ प्रदीप मिश्र
Kavita Kosh से
हँसना चाहता हूँ
इतनी ज़ोर की हँसी चाहिए
जिसकी बाढ़ में बह जाए
मन की सारी कुण्ठाएँ
रोना चाहता हूँ
इतनी करुणा चाहिए कि
उसकी नमी से
खेत में बदल जाए सारा मरूस्थल
चिल्लाना चाहता हूँ
इतनी तीव्रता चाहिए जिससे
सामने खड़ी चट्टान में
दरार पड़ जाए
बात करना चाहता हूँ
ऐसे शब्द चाहिए
जो हमारे रगों में बहें
जैसे बहती रहती है नदी
पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे अन्दर निरंतर
जैसे भीनता रहती है वायु
फेफड़ों की सतह पर
बात करना चाहता हूँ
मुझे वायु जैसे शब्द चाहिए
और नदी जैसी भाषा