Last modified on 9 जनवरी 2011, at 08:52

जल उठूँ मैं / केदारनाथ अग्रवाल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:52, 9 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जल उठूँ मैं जल उठूँ ऐसा कहाँ वरदान पाऊँ?
प्रेम है इतना हृदय में
नेह का नीरज रचाऊँ
देह की दीपक शिखा को
युग युगांतर तक जलाऊँ
युग्म-संकोची कुचों के बीच-
बस सुख-स्पर्श पाऊँ
तुम मुझे चूमो बराबर, मैं
नहीं फिर भी अघाऊँ
सिर घुनूँ तब, पूर्ण मद-मूँदे
दृगों में पैठ जाऊँ
जल उठूँ मैं जल उठूँ ऐसा कहाँ वरदान पाऊँ?