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बेजा एहसास / केदारनाथ अग्रवाल

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जिंदगी में
जहाँ भी
जिस तरह लोग रहते हैं
गंदे नाबदान की तरह
निरंतर बहते हैं,
आदमी होने का
बेजा एहसास करते हैं
दुर्गंध के
माहौल में
दिन-रात कलपते हैं

रचनाकाल: ०२-०९-१९७४