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प्लावन वसन्त का / बरीस पास्तेरनाक

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सूर्यास्त के ताप हो रहे थे निश्शेष
घने जंगल के बीच से होकर निकले वसंत प्लावित मार्ग पर
चलकर जा रहा था एक थकाहारा घुड़सवार
उराल के एक एकांत फ़ार्म की ओर ।

घोड़ा चबा रहा था घबर-घबर घास,
तंग पाटवाली नदी में
जलराशि दौड़ रही थी,
घोड़े की टापों की ताल के जवाब में ।

किंतु अश्वारोही ने जब ढीली कर दी अपनी लगाम
और घोड़े की गति हो गई मंथर