भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होली हाइकू / पूर्णिमा वर्मन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:11, 18 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूर्णिमा वर्मन }} अबकी साल बसंती सपने तुम ही तुम कितन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


अबकी साल

बसंती सपने

तुम ही तुम


कितनी बाट

तके मन फागुन

है गुमसुम


नैनों तलक

फ़हरती सरसों

मन चंदन


ढोल मंजीर

धनकती धरती

चंग मृदंग


टेसू चूनर

अरहर पायल

वन दुल्हन


होली आँगन

मन घन सावन

साजन बिन


बंदनवार

बँधे घर बाहर

बड़ा सुदिन


बिसरें बैर

मनाएँ जनमत

प्रीत कठिन


केसर गंध

उड़े वन-उपवन

मस्त पवन


पागल तितली

भटके दर-दर

बनी मलंग


डाल लचीली

सुबह सजीली

खिले कदंब


छ्प्पन भोग

अठारह नखरे

गया हेमंत