भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मौत से पहले / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:00, 11 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’ |संग्रह=थिरकती है तृष्णा / ओम …)
सूख-सूख मर गई
रेत में नहा-नहा चिड़िया
नहीं उमड़ा उस पर
बिरखा को रत्ती भर नेह ।
ताल-तलाई
कुँड-बावड़ी
सपनों में भी
रीते दिखते हैं
भरे
कब सोचा था उस ने
मौत से पहले
एक साध थी;
नहाती बिरखा में
दो पल सुख भोगती
जो ढकणी भर बरसा होता मेह ।