भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मारना / उदय प्रकाश
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:18, 21 फ़रवरी 2008 का अवतरण
आदमी
मरने के बाद
कुछ नहीं सोचता.
आदमी
मरने के बाद
कुछ नहीं बोलता.
कुछ नहीं सोचने
और कुछ नहीं बोलने पर
आदमी
मर जाता है.