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अनभिज्ञ चिड़िया / भावना कुँअर

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एक चिड़िया

आयी फुदकती सी

नाज़ुक सी, चंचल सी

अपनी मस्ती में मस्त सी

बेपरवाह

स्वछन्द

अनभिज्ञ सी

अपनी सपनों की दुनिया में

खोई सी

अचानक रुकी

डरी, सहमी

भय से

विस्फरित आँखें

एक झटका सा लगा

और कदम वहीँ रुक गए

साहस जुटाया

पर धैर्य टूट गया

बचना चाहा

पर गिर पड़ी

साँसे बिखरने लगीं

शरीर बेज़ान होने लगा

पल भर में ही

सारी चंचलता, कोमलता

नष्ट हो गयी

न जुटा पायी साहस

उस दीर्घकाय परिंदे से

खुद को बचाने का।