भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धोरों की महक / राजेन्द्र जोशी

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:49, 28 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र जोशी |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>धोरे धोरों क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धोरे
धोरों की सुंदरता
क्यों लगती है सुहावनी !
धोरों पर सोते हैं
बैठते है
गुनगुनाते है
धोरों में चमक हैं !
क्या करता है यहां सोना ?
सोने को क्यों नहीं निकालते ?
निकलता है सोना
तभी तो कहता हैं
अमेरिका
भारत ज्ञान का विपुल भण्डार है
हथिया लेगें ये सारा विश्व !