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कितना नाशुक्रा हूँ / नंदकिशोर आचार्य

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गहरी हरी छतरी-सा
              खुला छतनार
ले लेता अपनी छाया में
              मुझ को ।

कितना नाशुक्रा हूँ पर मैं
घने-घने साए में उसके बैठ
याद करता हूँ
फिर तुम को !

27 अगस्त 2009