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छाँह-द्वीप तुम ! / रमेश रंजक
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थल के छाँह-द्वीप तुम !
पल के सिन्धु-सेतु हो
जल-थल के संबल हो,
लेकिन पास नहीं हो
जब-जब पनडुब्बी भर
डूबा है
अनाथ मन
बैठ गई है पगडंडी पर
देह की थकन
तब-तब मेरे वर्तमान को
सुधा पिलाकर
सिद्ध कर गए हो—
कोरे इतिहास नहीं हो