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अपनी परिपाटी / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान
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अपनी परिपाटी
वैसे तो हम
सत्य अहिंसा के अनुयायी है
पर नागों के दाँत
तोड़ना हमको आता है
युगों युगों से
यही रही है
अपनी परिपाटी
प्राण दिये पर
दिया न दुश्मन को
तिल भर माटी
सदाचार से
अपना बड़ा पुराना नाता है
वक्त पड़ा तो
हँस-हँस खायी
सीने पर गोली
मरते दम तक
मुंह से निकली
जय भारत की बोली
दया धर्म के गीत
यहाँ का जन जन गाता है
औरों के दुख को
अपना दुख
हमने जाना है
सबसे बड़ा धर्म
दुनिया का
परहित माना है
शांति दूत भारत को
जग में जाना जाता है