सिपाही / मख़दूम मोहिउद्दीन
यह नज़्म दूसरे विश्व-युद्ध के साम्राज्ञी दौर में लिखी गई
जाने वाले सिपाही से पूछो
वो कहाँ जा रहा है ?
कौन दुखिया है जो गा रही है
भूखे बच्चे को बहला रही है ।
लाश जलने की बू आ रही है
ज़िन्दगी है के चिल्ला रही है ।
जाने वाले सिपाही से पूछो
वो कहाँ जा रहा है ?
कितने सहमे हुए हैं नज़ारे
कैसे डर-डर के चलते हैं तारे ।
क्या जवानी का खूँ हो रहा है
सुर्ख़ हैं आँचलों के किनारे ।
जाने वाले सिपाही से पूछो
वो कहाँ जा रहा है ?
गिर रहा है सियाही का डेरा
हो रहा है मेरी जाँ सवेरा ।
वो वतन छोड़ कर जाने वाले
खुल गया इंक़लाबी फरेरा<ref>झंडा</ref> ।
जाने वाले सिपाही से पूछो
वो कहाँ जा रहा है ?
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