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इंसान ना बनना / मधु गजाधर

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सुनो......
किसी की व्यथा ,
किसी की व्याकुलता से
किसी के रुदन
किसी की आहों से
तुमकभी ....
पिघल मत जाना ,
विचलित मत होना '
मदद करने के लिए
कभी .....
आगे मत बढ़ना
वर्ना लोग
व्यर्थ में तुम्हें
"इंसान" समझने लगेंगे ,
और .....
कटने लगेंगे तुम से ,
गिरा देंगे अपनी नज़रों से तुम्हें
क्योंकि
और आज के युग में
सब से निम्न निगाहों से देखा जाता है
"इंसान" को
सब से तुच्छ समझा जाता है
"इंसानियत" को
किसी के दुःख में
 दुखी होने वाले को
अब 'पागल 'कहा जाता है ,
पराये आंसूओं के देख कर
अपनी आँखें नम करना ,
अब...
चकित करता है लोगों को
अब जीवन की...
परिभाषाएं बदल चुकी हैं
अब मन की ....
भावनाएं जम चुकी हैं
चाँद पर पहुचने की आस में
धरती का मोह छुट गया है ,
और अब तो
मन्त्रों का स्वरुप भी
अब
अपनी सोच से बदल गया है
अब कभी कोई
"वसुदेव कुटुम्बकम "
नहीं जपता
आज नया मन्त्र उपजा है
"अहम् कुटुम्बकम "
'मैं ही मैं "
"मैं सर्वस्व "
"मैं और मेरा "
और हाँ
द्रवित होकर जिस के लिए
आगे बढोगे
मदद करोगे...
याद रखना कि ...
वो भी मौका देख कर
काट देगा
वो मददगार उंगलियाँ तुम्हारी ,
भोंकेगा छुरा पीछे से
लेकिन फिर भी
कर देगा वो ..
दिल के पार तुम्हारे
कहाँ तक लड़ोगे ?
किस किस से लड़ोगे ?
इसलिए
समय के अनुरूप ढलना,
और सब कुछ करना
लेकिन कभी
इंसान ना बनना