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सोने की नाव / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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आकाश में मेघ गरज रहे हैं.
बड़ी वर्षा हो रही है,
किनारे पर अकेला बैठा हूँ ,
मन में धीरज नहीं है.
राशि-राशि धन कट चुका है
बाढ़ से भरी हुई प्रखर नदी बह रही है.
धान काटते-काटते ही पानी आ गया.

एक तनिक सा खेत
उसमें अकेला मैं,
चारों तरफ़ खिलवाड़ कर रहा है
टेढ़ा-मेढा बहता हुआ पानी