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पानी मारा एक मोती / हरिवंशराय बच्चन
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आदमी:--
जा चुका है,
मर चुका है,
मोतियों का वह सुभग पानी
कि जिसकी मरजियों से सुन कहानी,
उल्लसित-मन,
उर्ज्वसित-भुज,
सिंधु कि विक्षुब्ध लहरे चीर
जल गंभीर में
सर-सर उतरता निडर
पहुँचा था अतल तक;
सीपियों को फाड़,
मुक्ता-परस-पुलकित,
भाग्य-धन को मुठ्ठियों में बांध,
पूरित-साध,
ऊपर को उठा था;
औ'हथेली पर उजाला पा
चमत्कृत दृग हुआ था.