Last modified on 16 मार्च 2013, at 13:33

हैदराबाद धमाकों पर / सरदार अंजुम

Umesh Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:33, 16 मार्च 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = सरदार अंजुम |संग्रह= }} {{KKCatghazal}} <poem>...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

साँचा:KKCatghazal


1).
अपाहिज बनके जीने की अदा अच्छी नहीं लगती
जो सूली तक न ले जाए सजा अच्छी नहीं लगती

2).
ये धमाके आम हों तो क्या करें
मौत का पैगाम हों तो क्या करें
मिल गयी थी जब हमें इनकी खबर,
कोशिशें नाकाम हों तो क्या करें
हादसे जिनमे छिपी हो दुश्मनी,
दोस्ती के नाम हों तो क्या करें

फरवरी 2013 में हैदराबाद धमाकों पर