भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बादशाह / मिथिलेश श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:32, 27 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मिथिलेश श्रीवास्तव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> रौशनी यह…)
रौशनी यहाँ भरपूर है पर लगता है
टेलीफ़ोन और बिजली के तार की तरह दुख
लाखों घरों में फैला है
रंग एक संभ्रांत अहसास है
चौराहे पर जली हुई लाल बत्ती
रुकने का संकेत है
आदमी पर आदमी का भरोसा नहीं ।
उस तेज़ जाती मोटर के ऊपर जुगनू की तरह
भुकभुकाती वह लाल बत्ती
किसी संकट में रास्ता देने का अनुरोध नहीं
बादशाह के आने की सूचना है