भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इक नज़्म /गुलज़ार
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:27, 29 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलज़ार |संग्रह=रात पश्मीने की / ग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
ये राह बहुत आसान नहीं,
जिस राह पे हाथ छुडा कर तुम
यूँ तन तन्हा चल निकली हो
इस खौफ़ से शायद राह भटक जाओ ना कहीं
हर मोड़ पर मैंने नज़्म खड़ी कर रखी है!
थक जाओ अगर--
और तुमको ज़रूरत पड़ जाए,
इक नज़्म की ऊँगली थाम के वापस आ जाना!