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दूजौ फेरौ / अर्जुनदेव चारण

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म्हैं
जलम भर
करती रैवूंला
थारै सूं प्रीत
थूं ई
कदेई कदेई
म्हारै कांनी देखजे
म्हैं
जिणती रैवूंला
थारै सारूं बेटा
थूं
कदेई कदेई
घरै आवजे

लो म्हैं
दूजौ फेरौ लेवूं