भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बभूत !/ कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:19, 24 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |संग्रह=लीलटांस / कन्हैया ल…)
पग नै कोनी
जद दिसा
रो ग्यान
निकमी बात है
मजल वास्तै
मन नै मीठो करणूं,
कठै है थारै कनैं
उगाण नै सूरज
अतो सोरो कोनी
अणपार आभै रो
खितिज बणणूं
कोनी चाहीजै
भागतै चमचोर
अन्धेरे नै गेलो
पण मोटी साच तो
लीक लीक चालसी
बणसी बभूत बा ही जोत
जकी आप रै ‘मैं’ नै
सेस तांईं बाळसी !