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बभूत !/ कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
पग नै कोनी
जद दिसा
रो ग्यान
निकमी बात है
मजल वास्तै
मन नै मीठो करणूं,
कठै है थारै कनैं
उगाण नै सूरज
अतो सोरो कोनी
अणपार आभै रो
खितिज बणणूं
कोनी चाहीजै
भागतै चमचोर
अन्धेरे नै गेलो
पण मोटी साच तो
लीक लीक चालसी
बणसी बभूत बा ही जोत
जकी आप रै ‘मैं’ नै
सेस तांईं बाळसी !