भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मां / श्याम महर्षि
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:32, 14 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्याम महर्षि |संग्रह=अड़वो / श्याम महर्षि }} [[Category:…)
मां थारै पगां कनै
बैठ‘र
बातां करयां नैं
बीतग्या बरसां रा बरस
न थे कीं कैयो
न म्हैं कीं पूछ्यो थांनैं
कै कांई हाल-हुवाळ है थांरा।
मां टाबर पणै मांय
अलेखूं बातां रा सवाल
पूछतो थानै
अर थे बिना उथळ्यां
देंवता रैया जवाब।
मां फेरू ई
थे
न कीं पूछ्यो
अर न कीं
कैयो म्हनैं।