♦ रचनाकार: ईसुरी
बखरी बसियत है भारे की दई पिया प्यारे की
कच्ची भींट उठी माटी की, छाई फूस चारे की
बे बंदेज बड़ी बे बाड़ा, जई में दस द्वारे की
एकऊ नईं किबार किबरियाँ, बिना कुची तारे की
ईसुर चाय निकारौ जिदना, हमें कौन उवारे की ।
बखरी बसियत है भारे की दई पिया प्यारे की
कच्ची भींट उठी माटी की, छाई फूस चारे की
बे बंदेज बड़ी बे बाड़ा, जई में दस द्वारे की
एकऊ नईं किबार किबरियाँ, बिना कुची तारे की
ईसुर चाय निकारौ जिदना, हमें कौन उवारे की ।