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हो रहो उसके, निरन्तर चरण में चिपटे रहो / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(तर्ज गजल-ताल रूपक)

हो रहो उसके, निरन्तर चरणमें चिपटे रहो।
दूर मत हो‌ओ कभी, नित हृदयसे लिपटे रहो॥