भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक दीप मेरा / पूर्णिमा वर्मन
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:02, 16 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूर्णिमा वर्मन }} Category:गीत दुनिया के मेले में <br> एक दीप ...)
दुनिया के मेले में
एक दीप मेरा
ढेर से धुँधलके में
ढूँढ़ता सवेरा
वंदन अभिनंदन में
खोया उजियारा
उत्सव के मंडप में
आभिजात्य सारा
भरा रहा शहर
रौशनी से हमारा
मन में पर छिपा रहा
पूरा अंधियारा
जिसने अंधियारे का साफ़ किया डेरा
जिसने उजियारे का रंग वहां फेरा
एक दीप मेरा
सड़कों पर भीड़ बहुत
सूना गलियारा
अंजुरी भर पंचामृत
बाकी जल खारा
सप्त सुर तीन ग्राम
अपना इकतारा
छोटे से मंदिर का
ज्योतित चौबारा
जिसने कल्याण तीव्र मध्यम में टेरा
जिससे इन साँसों पर चैन का बसेरा
एक दीप मेरा