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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
मेरा छोटा बेटा दाखिल होता है
कमरे में और कहता है
'आप गिद्ध हैं
मैं चूहा हूँ’
मैं अपनी किताब परे रख देता हूँ
मुझमें उग जाते हैं
पंख और पंजे
उनकी मनहूस छायाएँ
दीवारों पर दौड़ती हैं
मैं गिद्ध हूँ
वह चूहा है
'आप भेड़िया हैं
मैं बकरी हूँ’
मैंने मेज के चक्कर लगाए
और मैं भेड़िया बन जाता हूँ
खिड़कियाँ चमकती हैं
नुकीले दाँतों की तरह
अँधेरे में
वह दौड़ता है अपनी माँ के पास
सुरक्षा के लिए
सिर को छिपा लेता है माँ की गोद में।