Last modified on 11 अगस्त 2014, at 13:05

गीत गुणनफल के / रमेश रंजक

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:05, 11 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |अनुवादक= |संग्रह=किरण क...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गीत गुणनफल के
सम्बोधन कल के
डूब गए धार में फिसल के

मछली थी बाँह की प्रिया
क्यों मन को तामसी किया
सपनों के पंख सीपिया
रह गए कगार पर मचल के

नीर में छपाक-सी हुई
पीर खुल गई कसी हुई
ज़िन्दगी मज़ाक-सी हुई
रंग उड़े काग़ज़ी कमल के

खेल कर क्षणीक पराग से
उम्र भर जले चिराग-से
भीतरी अदृश्य आग के
और घने हो गए धुँधलके