भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत गुणनफल के / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गीत गुणनफल के
सम्बोधन कल के
डूब गए धार में फिसल के

मछली थी बाँह की प्रिया
क्यों मन को तामसी किया
सपनों के पंख सीपिया
रह गए कगार पर मचल के

नीर में छपाक-सी हुई
पीर खुल गई कसी हुई
ज़िन्दगी मज़ाक-सी हुई
रंग उड़े काग़ज़ी कमल के

खेल कर क्षणिक पराग से
उम्र भर जले चिराग-से
भीतरी अदृश्य आग के
और घने हो गए धुँधलके