भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भजन कर निरना एकादसी करना / मालवी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:49, 31 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=मालवी }} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

भजन कर निरना एकादसी करना
राजा ब्रह्म आगे साक्षी भरना
पेली निरजला, दूसरी सिरजला
दोनोई एकादसी करना
भाव भक्ति से जो कोई साधे
बैतरनी में तिरना
भजन कर निरना एकादसी करना
दसमी के दिन एकटंक जीमणा
ग्यारस निरनै करना
बारस के दिन भोजन करना
जमराज से नहीं डरना
भजन कर...
एकादशी को अटल पुण्य है
अनमाय जीव नहीं रखना
भावभक्ति से जो कोई साधे
भवसागर से तिरना
भजन कर...
जनम सुधारण जग में मेला
भूल आलस नहीं रखना
कहे कबीर सुनो भई साधो
बैकुंठा को चलना