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सग्गा / निशान्त

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बै कैवण में सग्गा तो अवस कहिजै पण जाबक ई नीं समझै सग्गै तो संकट !

छुछक, भात, ओढावणी अर दायजो लेंवती बेळा कदै ई नीं सोचै कै सग्गो कळीज तो नीं गयो करज रै कादै ! </poem>