चरखे़ की प्रतिज्ञा / शैलेंद्र चतुर्वेदी

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मेरे चरख़े का टूटे न तार, हरदम चलाता रहूं।

भारत के संकट पे तन-मन लगा दूं,
प्राणों को कर दूं न्यौछार, खद्दर बनाता रहूं।

खद्दर के कपड़े स्वदेशी बना के,
विदेशी में ठोकर मार, घिन्नी घुमाता रहूं।

गांधी के वचनों को पूरा करा दूं,
भारत को लूंगा उबार, माला चढ़ाता रहूं।

चुटकी से तागे को बट करके जोडूं,
हरि का बनाऊं मैं हार, फरही दबाता रहूं।

लेंगे इसी से शैलेंद्र स्वराज्य अब,
होंगे गुलामी से पार, मंगल मनाता रहूं।

विदेशी कपड़े के होंगे हवन अब,
कर दें जलाकर के छार, आहुति चढ़ाता रहूं।

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