Last modified on 17 मई 2010, at 00:06

आम रसीले / मन्नन द्विवेदी गजपुरी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:06, 17 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मन्नन द्विवेदी गजपुरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> पके-प…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पके-पके क्या आम रसीले, हरे-लाल हैं नीले-पीले।
आँधी अगर कभी आ जाती, आम हज़ारों पीट गिराती।
इनको लेकर चलो ताल पर, वहाँ खूब पानी से धोकर।
सौ-पचास तक खाएँगे हम, आज न भोजन पाएँगे हम।

’सरस्वती’ पत्रिका के हीरक जयंती विशेषांक में प्रकाशित