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आम रसीले / मन्नन द्विवेदी गजपुरी
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पके-पके क्या आम रसीले,
हरे-लाल हैं नीले-पीले!
आँधी अगर कभी आ जाती,
आम हजारों पीट गिराती!
इनको लेकर चलो ताल पर,
वहाँ खूब पानी से धोकर!
सौ-पचास तक खाएँगे हम,
आज न भोजन पाएँगे हम!
’सरस्वती’ पत्रिका के हीरक जयंती विशेषांक में प्रकाशित