भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोटी का संविधान / देवेन्द्र आर्य
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:24, 3 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवेन्द्र आर्य |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दिल्ली झण्डा और देशगान
साधू जंगल गइया महान ।
सबके सब ठिठक गए आके
लोहे के फाटक पर पाके
टिन का एक टुकड़ा लटक रहा
'कुत्ते से रहिए सावधान ।'
चेहरे पर उग आई घासें
सड़ती उम्मीदों की लाशें
वे जब भी सोचा करते हैं
उड़ते रहते हैं वायुयान ।
बातों को देते पटकनिया
चश्मा स्याही टोपी बनिया
उन लोगों नें फिर बदल दिया
अपना पहले वाला बयान ।
केसरिया झण्डा शुद्ध लाभ
जैसे समझौता युद्ध लाभ
रस्ता चलते कुछ लोग हमें
देते रहते हैं दिशा ग्यान ।
एक गीत और एक बंजारा
अाओ खुरचें यह अंधियारा
नाखूनों की भाषा में लिख डालें
रोटी का संविधान ।
रचनाकाल : जून 1979