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शान्तिनिकेतन में / शैलेन्द्र शान्त

1.

बहुत से फूल खिले
रंग-बिरंगे
हृदय उपवन में
भाव-कुँज में

बहे सुगन्ध
बहे हवा प्रेम की
करुणा बहे
मन हो गीला
नैन नम

दया की ज्योति जले
भाषा-जाति तजे
धरती का रूप धरे कवि मन।

2.
'
हे विश्व कवि
बरगद विशाल
बैठ लूँ
थोड़ी देर
तेरे द्वार
मन कहे पुकार
धरती हरी-भरी
मौसम रहे ख़ुशगवार
उमड़ता रहे प्यार
वृक्षों पर, कृषकों पर
बेशुमार, बेशुमार

पूजो-पूजो
वृक्ष पूजो, हल पूजो
ग्राम्य जन-बल पूजो
इनमें जीवन सुगन्ध अपार
कहाँ मानते हार
हलवाहे
ढोर हाँकते चरवाहे
बुनकर, दस्तकार
बैठ लूँ
थोड़ी देर
तेरे द्वार
मन कहे पुकार।