भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टे बांदर / इंदिरा वासवाणी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:19, 1 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इंदिरा वासवाणी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हू, मुंहुं मोननि में विझी
पाणु लिकाए संसार खां
कुंड मेंपियो आहे शान्त
शरीरु सॼो ज़ख़मियलु सन्दसि
ढेरु पथरनि जो अॻियां
हर लांघाऊं हिकु
पथरु चिटीन्दो थो वञ
हू सचु आहे।

हूअ पंहिंजे अंगनि खे
लीड़ियूं थियल साढ़ीअ सां
हितां हुतां ढकण जी कोशिश पेई करे
हर राहगीर
हुन जो बलातकार करे
सन्दसि अॻियां सिका उछिलाया
हूअ ईमानदारी आहे। (बुरा मत देखो)

हशाम माण्हुनि जा
हिक फथिकन्दड़ लाशखे ढोईन्दा
राम नाम सत है जा नारा हणन्दा
मसाण ॾांहुं धूकीन्दा थे विया
हिन जो नालो अहिंसा आहे। (बुरा मत सुनो)