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हम्माद फ़ारुक़ी के लिए / कांतिमोहन 'सोज़'

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(यह ग़ज़ल हम्माद फ़ारुक़ी के लिए)'

याद की बदली रिमझिम-रिमझिम।
दर्द की बिजली चमचम-चमचम।

कल की दुहाई क्या देता है
पल में बदल जाता है मौसम।

कल थे अन्धेरे रौशन-रौशन
आज सवेरे मद्धम-मद्धम।

झेल चुके हैं हम भी रफ़ीक़ों
लाख बलाएँ लाख तलातुम।

कल का फ़साना झूम झमाझम
आज का नग़्मा धूम धमाधम।

यार ग़ज़ब की शै है ये धरती
सौ-सौ जन्नत एक जहन्नुम।

सोज़ इसी का नाम है दुनिया
किसको सज़ाएँ किसके जरायम।

2002-2017