भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम्माद फ़ारुक़ी के लिए / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:14, 2 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कांतिमोहन 'सोज़' |संग्रह=दोस्तों...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(यह ग़ज़ल हम्माद फ़ारुक़ी के लिए)'
याद की बदली रिमझिम-रिमझिम।
दर्द की बिजली चमचम-चमचम।
कल की दुहाई क्या देता है
पल में बदल जाता है मौसम।
कल थे अन्धेरे रौशन-रौशन
आज सवेरे मद्धम-मद्धम।
झेल चुके हैं हम भी रफ़ीक़ों
लाख बलाएँ लाख तलातुम।
कल का फ़साना झूम झमाझम
आज का नग़्मा धूम धमाधम।
यार ग़ज़ब की शै है ये धरती
सौ-सौ जन्नत एक जहन्नुम।
सोज़ इसी का नाम है दुनिया
किसको सज़ाएँ किसके जरायम।
2002-2017