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हम्माद फ़ारुक़ी के लिए / कांतिमोहन 'सोज़'
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(यह ग़ज़ल हम्माद फ़ारुक़ी के लिए)
याद की बदली रिमझिम-रिमझिम।
दर्द की बिजली चमचम-चमचम।
कल की दुहाई क्या देता है
पल में बदल जाता है मौसम।
कल थे अन्धेरे रौशन-रौशन
आज सवेरे मद्धम-मद्धम।
झेल चुके हैं हम भी रफ़ीक़ों
लाख बलाएँ लाख तलातुम।
कल का फ़साना झूम झमाझम
आज का नग़्मा धूम धमाधम।
यार ग़ज़ब की शै है ये धरती
सौ-सौ जन्नत एक जहन्नुम।
सोज़ इसी का नाम है दुनिया
किसको सज़ाएँ किसके जरायम।
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