भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निशा निमन्त्रण / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:27, 16 जुलाई 2008 का अवतरण
निशा निमन्त्रण
रचनाकार | हरिवंशराय बच्चन |
---|---|
प्रकाशक | राजपाल एंड सन्ज |
वर्ष | |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
विधा | रुबाईयाँ |
पृष्ठ | 128 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- दिन जल्दी जल्दी ढलता है / हरिवंशराय बच्चन
- साथी, अन्त दिवस का आया /हरिवंशराय बच्चन
- साथी, सांझ लगी अब होने /हरिवंशराय बच्चन
- संध्या सिंदूर लुटाती है / हरिवंशराय बच्चन
- बीत चली संध्या की वेला / हरिवंशराय बच्चन
- चल बसी संध्या गगन से /हरिवंशराय बच्चन
- उदित संध्या का तारा /हरिवंशराय बच्चन
- अंधकार बढ़्ता जाता है /हरिवंशराय बच्चन
- जब निशा नभ से उतरती /हरिवंशराय बच्चन
- तुम तूफ़ान समझ पाओगे? / हरिवंशराय बच्चन
- प्रबल झंझावात, साथी /हरिवंशराय बच्चन
- है यह पतझर की शाम,सखे! / हरिवंशराय बच्चन
- यह पावा की सांझ रंगीली /हरिवंशराय बच्चन
- दीपक पर परवाने आए /हरिवंशराय बच्चन
- वायु बहती शीत-निष्ठुर /हरिवंशराय बच्चन
- गिरजे से घंटे की टन-टन /हरिवंशराय बच्चन
- अब निशा देती निमंत्रण /हरिवंशराय बच्चन
- स्वप्न भी छल, जागरण भी /हरिवंशराय बच्चन
- आ, सोने से पहले गा लें /हरिवंशराय बच्चन
- तम ने जीवन-तरु को घेरा /हरिवंशराय बच्चन
- दीप अभी जलने दे, भाई /हरिवंशराय बच्चन
- आ, तेरे उर में छिप जाऊँ /हरिवंशराय बच्चन
- आओ, सो जाएँ, मर जाएँ /हरिवंशराय बच्चन
- हो मधुर सपना तुम्हारा /हरिवंशराय बच्चन
- कोई पार नदी के गाता /हरिवंशराय बच्चन
- आओ, बैठे तरु के नीचे /हरिवंशराय बच्चन
- साथी, घर-घर आज दिवाली /हरिवंशराय बच्चन
- आ, गिन डालें नभ के तारे /हरिवंशराय बच्चन
- मेरा गगन से संलाप /हरिवंशराय बच्चन
- कहते हैं, तारे गाते हैं / हरिवंशराय बच्चन
- साथी, देख उल्कापात /हरिवंशराय बच्चन
- देखो, टूट रहा है तारा /हरिवंशराय बच्चन
- मुझसे चांद कहा करता है /हरिवंशराय बच्चन
- विश्व सारा सो रहा है /हरिवंशराय बच्चन
- कोई रोता दूर कहीं पर /हरिवंशराय बच्चन
- साथी, सो न, कर कुछ बात / हरिवंशराय बच्चन
- तूने क्या सपना दॆखा है? /हरिवंशराय बच्चन
- आज घिरे हैं बादल, साथी /हरिवंशराय बच्चन
- देख रात है काली कितनी /हरिवंशराय बच्चन
- यह पपीहे की रटन है / हरिवंशराय बच्चन
- है पावस की रात अंधेरी /हरिवंशराय बच्चन
- आज मुझसे बोल, बादल /हरिवंशराय बच्चन
- आज रोती रात, साथी /हरिवंशराय बच्चन
- रात-रात भर श्वान भूकते /हरिवंशराय बच्चन
- रो, अशकुन बतलाने वाली /हरिवंशराय बच्चन
- साथी, नया वर्ष आया है /हरिवंशराय बच्चन
- आओ, नूतन वर्ष मना लें /हरिवंशराय बच्चन
- रात आधी हो गई है / हरिवंशराय बच्चन
- दस / हरिवंशराय बच्चन
- ग्यारह / हरिवंशराय बच्चन
- बारह / हरिवंशराय बच्चन
- तेरह / हरिवंशराय बच्चन
- चौदह / हरिवंशराय बच्चन
- पंद्रह / हरिवंशराय बच्चन
- सोलह / हरिवंशराय बच्चन
- सत्रह / हरिवंशराय बच्चन
- अट्ठारह / हरिवंशराय बच्चन
- उन्नीस / हरिवंशराय बच्चन
- बीस / हरिवंशराय बच्चन
- था तुम्हें मैंने रुलाया / हरिवंशराय बच्चन
- स्वप्न भी छल / हरिवंशराय बच्चन